Add To collaction

भटकती आत्मा भाग - 19


    भटकतीभटकती आत्मा भाग –19

मनकू उदास सा एक रॉक पर उतरा था | साभार दिवस को आलिंगन में ले रही थी | सूर्यदेव अपनी किरण को समेट रहे थे, तथा दूर दो पर्वतों के मध्य से गोल रक्ताभ आकार में वसुधा को लुभायी दृष्टि से हुंकार रहे थे एल पक्षी गण रंगव कर रहे थे, तथा फुदक फुदक कर वृक्ष की एक शाखा से दूसरी शाखा पर आ - जा रहे थे | जंगली पुष्प, प्रकृति के वस्त्रों को अलंकृत कर रहे थे एल 
  मनकू माझी इन स्वर्णिम दृश्यावली से बेखबर अनंत में निर्निमेष निहारता जा रहा था एल अचानक किसी हाथ ने अपने चक्षु दोस्त को छुआ एल वह अचंभे की स्थिति में रह गया, फिर कुछ चित्रण सा हुआ कुछ शब्दों के पुष्प नीचे - "डियर मैगनोलिया "
     "ओह यस डायर माइकल" -  
बोली गई मनकू के गले में अपनी पोशाक का हार दिया उसने |
   "तुम अचानक चले गए थे, डियर"?
   "मैं राजगीर पापा के साथ गया था | उन साहब को जो हमारे मेहमान आए हैं ये, - घर में पापा की इच्छा थी मैं तो जाना नहीं चाहता था, लेकिन पापा की जिद चली गई"|
   मनकू के मुख पर उदास तितली तैर गई एल
     "तुम तो बहुत ही कम मिलते हो डायर"|
  " शाम को काम से थका-हारा लौटना क्या है ना"|
   "आजकल क्या गुल नया खिला रहे हो"   
  "क्या"? -अनय बनी मनकू अविश्वास ने कहा |
    "तुम लोगों ने तो सड़क निर्माण विभाग के साहब को पीट-पीटकर अधमरा कर दिया था,बेचारा अस्पताल में डाला है"|
   "हां, लेकिन उसने भी तो कम अत्याचार नहीं किया था"| 
   "बात क्या हुई थी"? हम लोग तो एक दिन पहले ही राजगीर जा चुके थे"|
   मनकू मिर्जा ने सारी घटना मैगनोलिया से कह कर चौंका दिया मैगनोलिया के मुंह से ही रह गए गंभीर बातें उन्होंने कहा- ''जानते हो,पापा पूछताछ करने वाले हैं, और दोस्तों को नतीजे निकालने वाले हैं''|
   "अच्छा, ऐसा"¡
हां ये तो हिला रिपोर्ट उस साहब ने दिया है | उनका कहना है कि बंगले को लूटने के लिए सभी मजदूर आये थे"|
  "ये सरसर झूठ है"|
  "घबड़ाओ नहीं डायर, मैं ये अत्याचारी गाँव वालों पर नहीं होने दूँगी l आज ही पापा से सारी बातें बताऊँ l वे अत्याचारी गाँववालों पर नहीं होने दूँगी"|
"ठीक है मैगनोलिया, तीन विदेशियों के सम्मुख तुम ही तो अपनी लगती हो"|
   "छोड़ो भी ये मक्खन बाजी | अब आगे क्या करने का विचार है"?
   "मैं-मैं-अच्छा अब क्या कर सकता हूँ"?
   "अरे, ऐसे ही बैठे रहने से तो भूखा मर गया | कोई उपाय सोचा है - रोजी-रोटी का"?
      "ओह,नहीं तो! मुझे तो कोई दूर नजर नहीं आता"|
   मैं बताता हूँ तूफान ? मेरी बात क्या तुम मानोगे"?
    "तुम्हारी बातें पर विश्वास करके तो मैं जान भी दे से नहीं हँसिचा मारूँगा"|
   "नहीं जान लीजिए की बात नहीं, तुम मेरे यहां माली की पढ़ाई से नौकरी कर लो"|
    "क्या! मैंफे यहां नौकरी की व्यवस्था"?
    "फिर हर्ज में ही क्या है, पत्थर"?
  "क्या पिताजी पिताजी मुझे"?
   "यह बात तुम मेरे ऊपर छोड़ दो मैं उन्हें मना लूंगी"|
    मनकू माझी गंभीर सा हो गया था | मैगनोलिया को यह अच्छा नहीं लगा l उसने एक बड़ा सा फूल तोड़ कर मनकू माझी के मुख पर धमाका किया l शॉक कर मनकू ने हंसती हुई मैंगनोलिया को देखा, और उसके मुख पर भी मुस्कान हट गई | मैगनोलिया ने हाथों से मनकू के हाथ को पकड़ कर उठाया, और फिर दोनों हाथों में हाथ-हाथ में कुछ गुनगुनाते हुए जंगल में एक और चल पड़े l प्रकृति के नैसर्गिक सौंदर्य का एक पान कर रहे थे ये लोग |
       
                                       
     - × - × - × -      
        

                            
   ।। मैगनोलिया की बातें, यहां के किसानों के बारे में पूरी जानकारी नहीं हुई l वे स्वयं पुलिस कर्मियों के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका-जहां के मजदूर थे, अमेरिका से गुप्त रूप से पूछताछ की गई | पूछताछ से उन्हें मैंगोनोलिया की बातें पर विश्वास हो गया l रतिया, मनकू माझी और अन्य गांव के लोगों ने एक सी ही बात कही l कहीं कोई मजबूत हंसी-मजाक वाली बात नहीं कही थी l ऋषभ साहेब को मन उस साहेब पर गुस्सा हो आया था मैं तो बंगले में जल कर मर चुका था, इसलिए वह नहीं हो सका | 
न्यायालय से ग्रामवासियों की विपन्नता को न्याय के लिए एकजुट करने के लिए एकजुट हुए, और कुछ आर्थिक सहायता सरकार से आग्रह का वचन भी दिया l गांव वाले साहब साहब के सहृदयता पूर्ण व्यवहार से चित्रण हो गए थे | लेकिन गांववालों को तो कुछ और भी दुख: झेलना था, उन्हें क्या पता कि उनके साथ गेम खेलने का मौका क्या है?
  दो दिनों के बाद सड़क निर्माण विभाग के अपार्टमेंट अस्पताल से छुट्टी ले ली गई, दूसरे आवास पर एल जब से पता चला कि गांव वाले ने अपनी पुष्टि दे दी है, तो उनका खून खौल उठा लिया गया। वे लोग बंदूक से लाठियां और अश्व पर आश्रम गांव की ओर चल पड़े एल
रात के अँधेरे में छाई हुई निस्तब्धताको चिरती हुई रेत की तपिश जब मोहल्ले में पढ़े हुए छात्र साहब के आश्चर्य में पड़ गए, तब वे कुछ शंकित हो उठे एल उनके कदम टेलीफोन की ओर बढ़ गए एल
कुछ देर बाद पुलिस इकाई कुछ सशस्त्र पुलिस के साथ आवास पर पधारे एल उन्हें साथ लेकर साहेब तत्क्षण चल पड़े एल
   घाटी के एक गांव से आर्तनाद गूंज रहा था इन आवाजों के आधार पर जब यह लोग गांव पहुँचे , तब वहां का दृश्य देखकर कलेक्टर साहब और एसपी आग बबूला हो उठे | साहब के  एक नवयुवती से जबरदस्ती पर उतर आए थे, और उनके दोस्त कुछ ग्रामीणों पर कोड़ा बरसा रहे थे। उनके एक साथी ने झोपड़ी को जलाने के लिए दियासलाई लिया था। पुलिस अफसर गांव से कुछ दूरी पर ही अपनी जीप छोड़ आए थे। कलेक्टर साहब के आदेश पर ही ऐसा किया गया था l इसलिए यह अत्याचारी लोग बेखबर थे, पुलिस के आगमन से l
   अचानक पुलिस अफसर की आवाज गूंज उठी।सभी ब्रिटिश अत्याचारी इधर-उधर भागने लगे,परंतु पुलिस ने दौड़ कर एक-एक को दबोच लिया,फिर हथकड़ियां लगाकर  अपने साथ ले चले | कलेक्टर साहब गांव की दशा देखकर जहां एक ओर दु:खी हुए वहीं ग्रामीण दूसरे दृष्टिकोण से सोच रहे थे, और वे बेहद प्रसन्न और आश्वस्त थे , क्योंकि अब तो कलेक्टर साहब और पुलिस अफसर को वास्तविक बातों का प्रत्यक्ष प्रमाण मिल गया था |

  क्रमशः 

   

   7
0 Comments